Tuesday, February 12, 2013

आखिर हो गई अफजल को फांसी


शनिवार सुबह ही मेरे दोस्त ने टीवी चला दिया था। टीवी की आवाज से मेरी नींद खुल गई। जब नींद खुली तो समाचार चैनल जोर-जोर से चिल्ला रहे थे कि अफजल गुरु को फांसी हो गई। यह खबर सुन कर कुछ समय के लिए मेरे पूरे शरीर में रक्त प्रवाह तेज हो गया।
मैंने तुरंत टीवी के आवाज को और बढ़ाया, कानों को बार-बार सुनने को मिल रहा था कि अफजल गुरु को फांसी हो गई। आंख और कान को इस बात का विश्वास ही नहीं हो रहा था कि आखिर ऐसा हो भी सकता है क्या? क्योंकि यह तो एक राजनीतिक मामला बन गया था। भाजपा कांग्रेस को इसी मुददे पर बार-बार घेरती थी। इसी से उसे कुछ वोट मिल जाते थे। पिछले 12 वर्षो से अफजल को फांसी नहीं दी गई तो फिर आखिर क्या कर दिया गृह मंत्रालय ने कि किसी को भनक तक नहीं लगी और अफजल को फांसी भी हो गई। मैने कुछ और चैनलों को बदला, मामला साफ निकला अफजल गुरु को फांसी सही में हो गई थी। मुङो इस बात पर बड़ी चिंता हुई कि आखिर अफजल को फांसी कैसे हो गई। मैं गहन चिंतन में पड़ गया। अब भाजपा कांग्रेस को कैसे बात-बात पर अफजल के नाम को लेकर घेरेगी। क्योंकि भाजपा के लिए अफजल गुरु किसी वोट बैंक से कम नहीं था। चुनाव एवं आम रैलियों के दौरान कांग्रेस पर एक के बाद एक आरोप लगा कर भाजपा कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर देती थी लेकिन अब भाजपा के पास रामजन्म भूमि का ही मुददा  रह गया है।
चलो, इसी बहाने कुछ तो वोट बना सकता है। कांग्रेस ने जहां विपक्षी पार्टी से मुददा छीन लिया, वहीं 21 नवंबर को मुंबई हमले के आरोपी अजमल आमिर कसाब के बाद वर्ष 2001 में संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को फांसी देकार अपने उपर लगे तमाम भ्रष्टाचार महंगाई के आरोपों को कुछ समय के लिए धुमिल जरूर कर दिया है लेकिन यूपीए सरकार अगर दिल्ली गैंगरेप में पकड़े गए सभी छह आरोपियों को कड़ी सजा दिलाने में सफल हो जाती है तो जरूर लोकसभा चुनाव में यूपीए सरकार को फायदा मिल सकता है। इसके अलावा अफजल गुरू के फांसी के बाद देश में कट्टरपंथी एवं जेहादी उत्पात करने की पूरी तैयारी कर चुके होंगे। इसलिए सरकार को देश में रेड एलर्ट घोषित कर देना चाहिए। एवं सीमा पार से आने वाले सभी लोगों पर सख्त निगरानी रखने की जरूरत है। अफजल को फांसी मिलने के बाद हिंसक घटनाएं घटने की पूरी संभावना है। जिसका पहले भी कश्मीर के कुछ अलगाववादी संगठनों ने ऐलान भी किया था। भले ही आज कश्मीर सहित कुछ राज्यों में कर्फ्यू लगा दिया गया हो या फिर जगह-जगह नाके बंदी की गई हो लेकिन इतने से मामला हल होता नहीं दिख रहा। क्योंकि आपको याद होगा कुछ दिनों पहले छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में कुछ नक्सलियों ने दो आर्मी जवानों की हत्या करने के बाद उनके शरीर के अंदर बम छुपाया दिया था लेकिन विस्फोट करने में नाकामयाब रहे। इसके अलावा आसपास के कुछ जगहों पर जांच करने पर पाक निर्मित हथियार भी मिले थे। इसलिए भले इस समय आतंकी देश को छति नहीं पहुंचा सके लेकिन नक्सलियों से छति की पूरी संभावना है। इसलिए केंद्र की यूपीए सरकार को सही एवं सोच समझकर कदम उठाने की जरूरत है। वरना मामला कुछ भी हो सकता है।


लाशों पर राजनीति



मामला कुछ भी हो राजनीतिक मुददा बनना ही है। वह चाहे आतंकवाद, दुष्कर्म, कत्ल, कुपोषण या कोई और क्यों हो। कुंभ मेले में 36 लोगों की मौत पर भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। मतलब साफ है लाशों पर भी सहानुभूति और सबक लेने की बजाए राजनीतिक रोटियां सेंकनी आम बात है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं राज्य के मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजा की घोषण तो कर दी लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मुआवजा से क्षतिपूर्ति हो जाएगी? मामला गंभीर है। इसके अलावा मृतकों के परिजनों से मिलने की बजाए राज्य की सपा सरकार एवं केंद्र सरकार एक दूसरे पर आरोप लगा रही है। भाजपा भी इसमें पीछे कैसे रह सकती है क्योंकि धर्म के नाम का ठेका जो ले रखा है। भाजपा राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार पर आरोप लगा रही है लेकिन संघ के कार्यकत्ताओं को कुंभ मेले में भेज कर पीड़ितों की मदद करने की सोच भी नहीं सकती। यह ही है हमारी राजनीतिक व्यवस्था। इसके अलावा पुलिस प्रशासन एवं रेलवे विभाग को यह भली-भांति पता था कि मौनी अमावस्या के दिन स्नान के लिए करोड़ों लोग आएंगे लेकिन व्यवस्था के नाम पर दोनों ने ढिलाई बरती। बात गंभीर है, समय से पहले संभलने की जरूरत है।