Wednesday, July 31, 2013

बराक हुसैन ओबामा

  बराक ओबामा
बराक हुसैन ओबामा
बराक हुसैन ओबामा (जन्म: 4 अगस्त, 1961) अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति हैं। वे अमेरिका के प्रथम अश्वेत (अफ्रीकी अमेरिकन) राष्ट्रपति हैं। उन्होंने 20 जनवरी, 2009 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। ओबामा इलिनॉय प्रांत से कनिष्ठ सेनेटर और 2008 में अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रैटिक पार्टी के उम्मीदवार थे।
ओबामा हार्वर्ड लॉ स्कूल से 1991 में स्नातक बनें, जहां वे हॉर्वर्ड लॉ रिव्यू के पहले अफ्रीकी अमेरिकी अध्यक्ष भी रहे। 1997 से 2004 इलिनॉय सेनेट में तीन सेवाकाल पूर्ण करने के पूर्व ओबामा ने सामुदायिक आयोजक के रूप में कार्य किया है और नागरिक अधिकार अधिवक्ता के रूप में प्रेक्टिस की है। 1992 से 2004 तक उन्होंने शिकागो विधि विश्वविद्यालय में संवैधानिक कानून का अध्यापन भी किया। 2000 में अमेरिकी हाउस आॅफ रिप्रेसेंटेटिव में सीट हासिल करने में असफल होने के बाद जनवरी 2003 में उन्होंने अमेरिकी सेनेट का रुख किया और मार्च 2004 में प्राथमिक विजय हासिल की। नवंबर 2003 में सेनेट के लिए चुने गए।
109वें कांग्रेस में अल्पसंख्य डेमोक्रैट सदस्य के रूप में उन्होंने पारंपरिक हथियारों पर नियंत्रण और संघीय कोष के प्रयोग में अधिक सार्वजनिक उत्तरदायित्व का समर्थन करते विधेयकों के निर्माण में सहयोग दिया। वे पूर्वी यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका की राजकीय यात्रा पर भी गए। 110वें कांग्रेस में लॉबिंग व चुनावी घोटालों, पर्यावरण के बदलाव, नाभिकीय आतंकवाद और युद्ध से लौटे अमेरिकी सैनिकों की देखरेख से संबंधित विधेयकों के निर्माण में उन्होंने सहयोग दिया। विश्वशांति में उल्लेखनीय योगदान के लिए बराक ओबामा को वर्ष 2009 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है।

--होनोलूलू में जन्में ओबामा किन्याई मूल के अश्वेत पिता व अमेरिकी मूल की माता के संतान हैं। उनका अधिकांश प्रारंभिक जीवन अमेरिका के हवाई प्रांत में बीता। 6 से 10 वर्ष तक की अवस्था उन्होंने जकार्ता, इंडोनेशिया में अपनी माता और इंडोनेशियाई सौतेले पिता के संग बिताया। बाल्यकाल में उन्हें बैरी नाम से पुकारा जाता था। बाद में वे होनोलूलू वापस आकर अपनी ननिहाल में ही रहने लगे। 1995 में उनकी माता का कैंसर से देहांत हो गया। ओबामा की पत्नी का नाम मिशेल है। उनका विवाह 1992 में हुआ जिससे उनकी दो पुत्रियां हैं, 9 वर्षीय मालिया और 6 वर्षीय साशा। दो नवंबर, 2008 को ओबामा का आरंभिक लालन पालन करने वाली उनकी दादी मेडलिन दुनहम का 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
---ओबामा हार्वड लॉ स्कूल से 1991 में स्नातक बनें, जहां वे हार्वड लॉ रिव्यू के पहले अफ्रीकी अमेरिकी अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने दो लोकप्रिय पुस्तकें भी लिखी हैं, पहली पुस्तक ड्रीम्स फ्रॉम माई फादर: अ स्टोरी आफ रेस एंड इन्हेरिटेंस का प्रकाशन लॉ स्कूल से स्नातक बनने के कुछ दिन बाद ही हुआ था। इस पुस्तक में उनके होनोलूलू व जकार्ता में बीते बालपन, लॉस एंजलिस व न्यूयॉर्क में व्यतीत कॉलेज जीवन और 80 के दशक में शिकागो शहर में सामुदायिक आयोजक के रूप में उनकी नौकरी के दिनों के संस्मरण हैं। पुस्तक पर आधारित आडियो बुक को 2003 में प्रतिष्ठित ग्रैमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनकी दूसरी पुस्तक द ओडेसिटी आॅफ होप अक्टूबर 2006 में प्रकाशित हुई, मध्यावधि चुनाव के महज तीन हफ्ते पहले। यह किताब शीघ्र ही बेस्टसेलर सूची में शामिल हो गई। पुस्तक पर आधारित आडियो बुक को भी 2008 में प्रतिष्ठित ग्रैमी पुरस्कार से नवाजा गया है। शिकागो ट्रिब्यून के अनुसार पुस्तक के प्रचार के दौरान लोगों से मिलने के प्रभाव ने ही ओबामा को राष्ट्रपति पद के चुनाव में उतरने का हौसला दिया।
5 जून, 2008 को यह लगभग तय हो गया था कि ओबामा की उम्मीदवारी के समर्थन में उनकी डेमोक्रेटिक प्रतिलंली और पूर्व प्रथम महिला हिलेरी क्लिंटन अपनी दावेदारी छोड़ देंगी। अमेरिकी इतिहास में ओबामा न केवल पांचवें अफ्रीकी अमेरिकन सेनेटर हैं बल्कि लोकप्रिय वोट से चुने जाने वाले तीसरे और सेनेट में नियुक्त एकमात्र अफ्रीकी अमेरिकन सेनेटर भी हैं।
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अमेरिका में अश्वेतों का इतिहास

1619 : पहला अफ्रीकी दास वजीर्निया पहुंचा।
1793 : रूई ओटने की मशीन के अविष्कार से दासों की मांग बढ़ी। भगोड़े दास कानून में स्वतंत्र प्रांतों को दासों को वापस भेजने का प्रावधान किया गया, लेकिन उत्तर में इसे प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया गया।
1808 : अश्वेतों को लाने पर रोक लगाई गई।
1861 : अमेरिका से दक्षिण के अलग होने के बाद से कांफेडेरेसी की स्थापना। गृह युद्ध शुरू।
1863 : राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने स्वतंत्रता की घोषणा की, जिसके तहत कांफेडरेट प्रांतों के सभी दासों को आजाद घोषित किया गया।
1865 : गृहयुद्ध की समाप्तिप। लिंकन की हत्या।
1868 : संविधान में 14वां संशोधन कर सभी अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिकों पूर्ण नागरिकता को देने का प्रावधान किया गया।
1870 : अश्वेत पुरुषों को मताधिकार दिया गया।
1896 : सुप्रीमकोर्ट ने नस्लीय आधार पर पृथक्कीकरण को संविधान सम्मत बताया, जिससे दक्षिण में अलगाव शुरू हुआ।
1947 : जैकी राबिन्सन मेजर लीग बेसबाल में खेलने वाले पहले अश्वेत खिलाड़ी बने।
1985 : राष्ट्रपति हैरी एस ट्रग्समन ने अमेरिकी सशस्त्र सेनाओं में अलगाव खत्म करने के लिए आदेश जारी किया
1954 : सुप्रीम कोर्ट ने ब्राउन बनाम बोर्ड आॅफ   एजुकेशन मामले में स्कूलों में अलगाव को असवैधानिक करार दिया।
 1955 : अलाबामा के मोंटगोमरी में रोसा पार्क नाम की महिला ने अलग बस में सीट छोड़ने से इनकार कर दिया। उनकी गिरफ्तारी से शहरों मे अश्वेतों के लिए अलग बस की व्यवस्था समाप्त करने के लिए मार्टिन लूथर किंग की अगुवाई में एक वर्ष तक बहिष्कार अभियान चला।
1963 : मार्टिन लूथर किंग को अलाबामा के बर्किंघम में नागरिक अधिकार विरोध के दौरान जेल भेजा गया। उन्होंने वाशिंगटन में प्रसिद्ध आई हैव ए ड्रीम भाषण दिया।
 1965 : नागरिक अधिकारों के नेता माल्कम एक्स की हत्या। कांग्रेस ने मताधिकार कानून पारित किया।
1966 : मसाच्टूसेट्स के ऐडवर्ड ब्रूक गृह युद्ध के बाद शुरू हुए पुनर्निर्माण दौर के बाद से पहले अमेरिकी सीनेटर निर्वाचित हुए।
 1967 : थर्गूद मार्शल सुप्रीम कोर्ट के पहले अश्वेत न्यायाधीश बने।
1968 : मार्टिन लूथर किंग की टेनेसी के मेम्फिस में हत्या।
 1990 : डगलस वाइल्डर सीनेट की अगुवाई करने वाले पहले अश्वेत बने। वह वजीर्निया के गर्वनर बने गए।
 जून 2008 : इलिनाय से सीनेटर बराक ओबामा ने डेमोक्रेटिक प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी जीती और व्हाइट हाउस की दौड़ में शामिल हुए।
4 नवंबर 2008 : ओबामा ने राष्ट्रपति पद की दौड़ में जान मैक्केन को परास्त किया।


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अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 538 इलेक्ट्रोरल मतों में से 270 मतों की जरूरत होती है और बराक ओबामा ने दोबारा बहुमत हासिल कर लिया है।

आकर्षक व्यक्तित्व और अद्भुत वक्ता

बराक हुसैन ओबामा ने चार नवंबर, 2008 को इतिहास रचा था जब उन्होंने रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉन मैक्केन को आसानी से हराया था। वे अमेरिका के पहले काले राष्ट्रपति बन गए थे।
पद संभालने के बाद बराक ओबामा ने रिपब्लिकन के पुरजोर विरोध के बावजूद अर्थव्यवस्था को ताकत देने वाले कार्यक्रम को संसद की मंजूरी दिलवाई, अमेरिका के स्वास्थ्य कार्यक्रम को बदला, वॉल स्ट्रीट और बैंकिंग उद्योग के लिए नए नियम कायदे बनाए और अमेरिका के वाहन उद्योग को डूबने से बचाया। उन्होंने अमेरिकी समलैंगिकों को सेना में काम करने की छूट दिलवाई और संसद की मंजूरी के बिना भी उन लोगों को वैधानिक दर्जा दिलवाया जो अवैध अप्रवासी बच्चे के रुप में अमेरिका पहुंचे थे।
ओबामा और ओसामा
बराक ओबामा ने ओसामा बिना लादेन को मारने के लिए विशेष कमांडो दस्ता भेजा और सफलता हासिल की, इराक में युद्ध को समाप्त घोषित किया और रूस के राष्ट्रपति के दिमित्रि मेदवेदेव के साथ परमाणु समझौता करने में सफलता हासिल की। उनके कार्यकाल में अफगानिस्तान में युद्ध अपने चरम पर पहुंचा, लेकिन वे सैनिकों की वापसी का कार्यक्रम घोषित करने में सफल रहे।
बराक ओबामा वर्ष 1961 में पैदा हुए थे। उनके पिता कीनिया के एक बुद्धिजीवी थे और हवाई यूनिवर्सिटी में पढ़ते समय वे कंसास निवासी एन से मिले थे और उनसे शादी की थी। बराक ओबामा बहुत छोटे थे जब उनके माता-पिता में तलाक हो गया और उनके पिता परिवार को छोड़कर चले गए। इसके बाद अपने पिता से उनकी मुलाकात सिर्फ एक बार हुई जब वे हवाई आए थे।
जब बराक ओबामा छह वर्ष के थे तो उनकी मां ने एक इंडोनेशियाई व्यक्ति से शादी कर ली और परिवार जकार्ता चला गया। तब उन्हें बैरी के नाम से पुकारा जाता था। बाद में वे हवाई लौट आए और उनके नाना-नानी ने ही उनका पालन पोषण किया।
निजी जीवन पर सवाल

दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में रहने और कीनियाई मुस्लिम पिता के बेटे होने की वजह से दक्षिण पंथियों ने ये खूब प्रचार किया कि वे गोपनीय रूप से इस्लाम का पालन करते हैं और वे अमेरिका में पैदा नहीं हुए हैं, लेकिन बराक ओबामा इन अफवाहों को गलत साबित करने में सफल रहे। कोलंबिया यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क से स्नातक ओबामा ने शिकागो के गरीब इलाकों में तीन वर्ष तक सामुदायिक संयोजक की तरह काम करते रहे। इसके बाद उन्होंने हॉवर्ड लॉ स्कूल में पढ़ाई की।
शिकागो की एक लॉ फॉर्म में काम करते हुए वे मिशेल रॉबिन्सन से मिले और 1992 में दोनों ने विवाह कर लिया। उनकी दो बेटियां मलिया और सशा हैं।

हॉर्वर्ड की डिग्री के बाद वे नागरिक अधिकारों मामलों की वकालत करने लगे फिर वे यूनिवर्सिटी आॅफ  शिकागो में पढ़ाने लगे। यूनिवर्सिटी में वे एक लोकप्रिय शिक्षक और विधि-विचारक के रूप में जाने गए।
1996 में वे इलिनोइस प्रांत से सीनेट चुने गए।
सीनेटर के रूप में उन्होंने इराक  युद्ध का जमकर विरोध किया जिसने बाद में उन्हें राष्ट्रपति की उम्मीदवारी में सहायता की।

बराक ओबामा का अबतक का कार्यकाल

1997 से 2004 इलिनॉय सीनेट में तीन सेवाकाल पूर्ण करने के पूर्व ओबामा ने सामुदायिक आयोजक के रूप में कार्य किया है और नागरिक अधिकार अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस की है।
1992 से 2004 तक उन्होंने शिकागो विधि विश्वविद्यालय में संवैधानिक कानून का अध्यापन भी किया।
वर्ष 2000 में अमेरिकी हाउस आफ रिप्रेसेंटेटिव में सीट हासिल करने में असफल होने के बाद जनवरी 2003 में उन्होंने अमेरिकी सीनेट का रुख किया और मार्च 2004 में प्राथमिक विजय हासिल की। नवंबर 2003 में सेनेट के लिए चुने गए।
110वें कांग्रेस में लॉबिंग व चुनावी घोटालों, पर्यावरण के बदलाव, नाभिकीय आतंकवाद और युद्ध से लौटे अमेरिकी   सैनिकों की देखरेख से संबंधित विधेयकों के निर्माण में उन्होंने सहयोग दिया।
109वें कांग्रेस में अल्पसंख्य डेमोक्रेट सदस्य के रूप में उन्होंने पारंपरिक हथियारों पर नियंत्रण और संघीय कोष के प्रयोग में अधिक सार्वजनिक उत्तरदायित्व का समर्थन करते विधेयकों के निर्माण में सहयोग दिया।
विश्वशांति में उल्लेखनीय योगदान के लिए बराक ओबामा को वर्ष 2009 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है।
ओबामा ने दो लोकप्रिय पुस्तकें भी लिखी हैं, पहली पुस्तक ड्रीम्स फ्रॉम माई फादर: अ स्टोरी आफ रेस एंड इन्हेरिटेंस का प्रकाशन लॉ स्कूल से स्नातक बनने के कुछ दिन बाद ही हुआ था।
पुस्तक पर आधारित आडियो बुक को 2006 में प्रतिष्ठित ग्रैमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

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भारत के साथ संबन्ध
बराक ओबामा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने देश के लोगों के लिए रोजगारों की व्यवस्था करना है। भारत के साथ अच्छे संबंधों से यह काम संभव है। साल के अंत में ओबामा की भारत यात्रा के दौरान यह बात खुलकर सामने आई है। आज अमेरिका कई महत्वपूर्ण मामलों में भारत का साथ दे रहा है लेकिन यूएन सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता पर उसका रुख गोलमोल है।


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ओबामा के सामने चुनौतियां
महामंदी दौर--ग्रेट डिप्रेशन यानी महामंदी के बाद की सबसे बड़ी आर्थिक सुस्ती से अमेरिका धीरे-धीरे उबर तो रहा है लेकिन आंकडेÞ अब भी विकास के विपरीत हैं। बेरोजगारी की दर 7.9 प्रतिशत है और कई लाख अमेरिकी या तो बेरोजगार हैं या फिर अपनी क्षमता से कम स्तर के काम में लगे हैं। आर्थिक विकास दो प्रतिशत है जो सब कुछ ठीक होने का भरोसा नहीं दिलाता। जिन कारणों से अमेरिका की अर्थव्यवस्था ढीली पड़ रही है उनमें प्रमुख है यूरोप का कर्ज, संकट, अमेरिका के रियल एस्टेट बाजार में लगातार जारी उथल पुथल और अमेरिका की वित्तीय नीति पर अनिश्चितता।

ईरान सबसे बड़ी समस्या--अमेरिका नहीं चाहता कि ईरान के पास परमाणु हथियार हो जबकि ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण कार्यों यानी सिर्फ बिजली पैदा करने के लिए है।
मेडिकेयर योजना--अमेरिकी सरकार देश में 65 साल से ऊपर के लोगों के लिए एक बड़ी मेडिकेयर योजना चलाती है, लेकिन पयर्वेक्षकों का मानना है कि इस योजना का कोष खाली होने वाला है। चिकित्सा के खर्च पर राजकोष खाली हो रहा है। ये कार्यक्रम पचास साल पुराना है और डेमोक्रेट का ही लाया हुआ है।

Tuesday, February 12, 2013

आखिर हो गई अफजल को फांसी


शनिवार सुबह ही मेरे दोस्त ने टीवी चला दिया था। टीवी की आवाज से मेरी नींद खुल गई। जब नींद खुली तो समाचार चैनल जोर-जोर से चिल्ला रहे थे कि अफजल गुरु को फांसी हो गई। यह खबर सुन कर कुछ समय के लिए मेरे पूरे शरीर में रक्त प्रवाह तेज हो गया।
मैंने तुरंत टीवी के आवाज को और बढ़ाया, कानों को बार-बार सुनने को मिल रहा था कि अफजल गुरु को फांसी हो गई। आंख और कान को इस बात का विश्वास ही नहीं हो रहा था कि आखिर ऐसा हो भी सकता है क्या? क्योंकि यह तो एक राजनीतिक मामला बन गया था। भाजपा कांग्रेस को इसी मुददे पर बार-बार घेरती थी। इसी से उसे कुछ वोट मिल जाते थे। पिछले 12 वर्षो से अफजल को फांसी नहीं दी गई तो फिर आखिर क्या कर दिया गृह मंत्रालय ने कि किसी को भनक तक नहीं लगी और अफजल को फांसी भी हो गई। मैने कुछ और चैनलों को बदला, मामला साफ निकला अफजल गुरु को फांसी सही में हो गई थी। मुङो इस बात पर बड़ी चिंता हुई कि आखिर अफजल को फांसी कैसे हो गई। मैं गहन चिंतन में पड़ गया। अब भाजपा कांग्रेस को कैसे बात-बात पर अफजल के नाम को लेकर घेरेगी। क्योंकि भाजपा के लिए अफजल गुरु किसी वोट बैंक से कम नहीं था। चुनाव एवं आम रैलियों के दौरान कांग्रेस पर एक के बाद एक आरोप लगा कर भाजपा कांग्रेस को कठघरे में खड़ा कर देती थी लेकिन अब भाजपा के पास रामजन्म भूमि का ही मुददा  रह गया है।
चलो, इसी बहाने कुछ तो वोट बना सकता है। कांग्रेस ने जहां विपक्षी पार्टी से मुददा छीन लिया, वहीं 21 नवंबर को मुंबई हमले के आरोपी अजमल आमिर कसाब के बाद वर्ष 2001 में संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को फांसी देकार अपने उपर लगे तमाम भ्रष्टाचार महंगाई के आरोपों को कुछ समय के लिए धुमिल जरूर कर दिया है लेकिन यूपीए सरकार अगर दिल्ली गैंगरेप में पकड़े गए सभी छह आरोपियों को कड़ी सजा दिलाने में सफल हो जाती है तो जरूर लोकसभा चुनाव में यूपीए सरकार को फायदा मिल सकता है। इसके अलावा अफजल गुरू के फांसी के बाद देश में कट्टरपंथी एवं जेहादी उत्पात करने की पूरी तैयारी कर चुके होंगे। इसलिए सरकार को देश में रेड एलर्ट घोषित कर देना चाहिए। एवं सीमा पार से आने वाले सभी लोगों पर सख्त निगरानी रखने की जरूरत है। अफजल को फांसी मिलने के बाद हिंसक घटनाएं घटने की पूरी संभावना है। जिसका पहले भी कश्मीर के कुछ अलगाववादी संगठनों ने ऐलान भी किया था। भले ही आज कश्मीर सहित कुछ राज्यों में कर्फ्यू लगा दिया गया हो या फिर जगह-जगह नाके बंदी की गई हो लेकिन इतने से मामला हल होता नहीं दिख रहा। क्योंकि आपको याद होगा कुछ दिनों पहले छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में कुछ नक्सलियों ने दो आर्मी जवानों की हत्या करने के बाद उनके शरीर के अंदर बम छुपाया दिया था लेकिन विस्फोट करने में नाकामयाब रहे। इसके अलावा आसपास के कुछ जगहों पर जांच करने पर पाक निर्मित हथियार भी मिले थे। इसलिए भले इस समय आतंकी देश को छति नहीं पहुंचा सके लेकिन नक्सलियों से छति की पूरी संभावना है। इसलिए केंद्र की यूपीए सरकार को सही एवं सोच समझकर कदम उठाने की जरूरत है। वरना मामला कुछ भी हो सकता है।


लाशों पर राजनीति



मामला कुछ भी हो राजनीतिक मुददा बनना ही है। वह चाहे आतंकवाद, दुष्कर्म, कत्ल, कुपोषण या कोई और क्यों हो। कुंभ मेले में 36 लोगों की मौत पर भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। मतलब साफ है लाशों पर भी सहानुभूति और सबक लेने की बजाए राजनीतिक रोटियां सेंकनी आम बात है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं राज्य के मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजा की घोषण तो कर दी लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मुआवजा से क्षतिपूर्ति हो जाएगी? मामला गंभीर है। इसके अलावा मृतकों के परिजनों से मिलने की बजाए राज्य की सपा सरकार एवं केंद्र सरकार एक दूसरे पर आरोप लगा रही है। भाजपा भी इसमें पीछे कैसे रह सकती है क्योंकि धर्म के नाम का ठेका जो ले रखा है। भाजपा राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार पर आरोप लगा रही है लेकिन संघ के कार्यकत्ताओं को कुंभ मेले में भेज कर पीड़ितों की मदद करने की सोच भी नहीं सकती। यह ही है हमारी राजनीतिक व्यवस्था। इसके अलावा पुलिस प्रशासन एवं रेलवे विभाग को यह भली-भांति पता था कि मौनी अमावस्या के दिन स्नान के लिए करोड़ों लोग आएंगे लेकिन व्यवस्था के नाम पर दोनों ने ढिलाई बरती। बात गंभीर है, समय से पहले संभलने की जरूरत है।

Saturday, February 5, 2011

आतंक का राज

जिस तरह से देश मे लुट पाट आतंक का राज , भ्रस्टाचार चल रहा है उसके लिये हमे इन लोगों कों क्या करना चाहिये
सोनिया गाँधी
मनमोहन सिंह
दिग्विजिय सिंह
ए राजा
मायावती
सुरश कालू कलमाड़ी
बी स लाली
यदुरापा

Sunday, December 12, 2010

कुछ खो
मुस्लमान और पिछडे वर्गों के लालू प्रसाद यादव सबसे बड़ी ताकत थी ! बड़ी जाती के लोगों कों दबा कर रखा है ! और पन्द्रह सालो तक बिहार पर राज किया !

लेकिन ये अन्याय कब तक चलती , कबतक लोग अपना मजाक बनते हुये देखते, कबतक उनके बहु - baitiyo

Friday, December 10, 2010

कल की बात पूरानी

एक समय ऐसा था की लोगों कों घर से निकलना दूभर था , घर से निकलती ही सडको पर गढ़े उस से आगे बढ़े तो यातायात की परेशनी , अगर घर आने मै शांम हों गई तो मिया खैर नहीं थी की आप सही सलामत घर पहुच ही जाये १ क्यों की बिजली का दूर दूर तक दर्शन नहीं था १ फिर क्या कोई न कोई अँधेरा का फायदा उठाने कों तैयार रहता रहता था १ वह गावो के लोग हों या नामी गिरामी लुटेरे १ हाँ ये भी था की आपके सामान के साथ साथ आप कों भी गायब कर दिया जाता था १ क्या हुआ नहीं समझे १ अजी जनाब फिरोती के लिये १ क्या करे बिचरे लुटेरो कों भी ऊपर ज़ो देना पड़ता है १
गावो मे तो भेड़ बकरियो कों आप ने टहलते हुये तो देख ही होगा , ठीक उही प्रकार ये लुटेरे घुमते थे १ बेफिक्र निरभ्येहोकर सीना ताने हुये , किसी की बकरी ले जाते तो किसी की मुर्गी और तो और कितने की माँ ,बहनो की आबरू से भी खेलते थे १ लेकिन साहब क्या कर सकते थे , वे लोग अगर ज्यादा बोलते तो मरे जाते या उन्हे मोटी रकम चुकाने पड़ती
शिक्षा का तो दूर दूर तक ठिकाना ही नहीं था १ अगर स्कुल है भी तो कोसो दूर, लडके तो दूर जाकर पढ़ सकते थे, लेकिन लडकिय बाप रे घर

से निकलना मुश्किल था हजूर १

अगर कोई बीमार हों गया तो दूर दूर तक कोई हास्पिटल ही नहीं अगर गावो मै हास्पिटल है भी तो उसमे गाय, भैंस बाँधी गई है १ या वह जुए का अड्डा बना है