मामला कुछ भी हो राजनीतिक मुददा बनना ही है। वह चाहे आतंकवाद, दुष्कर्म, कत्ल, कुपोषण या कोई और क्यों न हो। कुंभ मेले में 36 लोगों की मौत पर भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। मतलब साफ है लाशों पर भी सहानुभूति और सबक लेने की बजाए राजनीतिक रोटियां सेंकनी आम बात है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं राज्य के मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजा की घोषण तो कर दी लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मुआवजा से क्षतिपूर्ति हो जाएगी? मामला गंभीर है। इसके अलावा मृतकों के परिजनों से मिलने की बजाए राज्य की सपा सरकार एवं केंद्र सरकार एक दूसरे पर आरोप लगा रही है। भाजपा भी इसमें पीछे कैसे रह सकती है क्योंकि धर्म के नाम का ठेका जो ले रखा है। भाजपा राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार पर आरोप लगा रही है लेकिन संघ के कार्यकत्ताओं को कुंभ मेले में भेज कर पीड़ितों की मदद करने की सोच भी नहीं सकती। यह ही है हमारी राजनीतिक व्यवस्था। इसके अलावा पुलिस प्रशासन एवं रेलवे विभाग को यह भली-भांति पता था कि मौनी अमावस्या के दिन स्नान के लिए करोड़ों लोग आएंगे लेकिन व्यवस्था के नाम पर दोनों ने ढिलाई बरती। बात गंभीर है, समय से पहले संभलने की जरूरत है।
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